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जिन्दगी में / महेश सन्तोषी

ज़िन्दगी में एक और औरत कहकर
मैं तुम्हें अपमानित नहीं करूंगा,
पर, ज़िन्दगी में एक और प्यार की तरह
मैं तुम्हें स्थापित भी नहीं करूंगा!

जो लोग प्यार को जीते हैं,
उसे कभी इतिहास नहीं बनने देते,
यों कुछ लोग सिर्फ
औरतों को जीते हैं, उनके प्यार को नहीं जीते,
एक इतिहास मानकर
मैं तुम्हें पीछे नहीं छोड़ सकता,
और ना ही
किसी गणित का
एक भाग बताकर
मैं तुम्हें उसमें जोड़ सकता हूँ,
वर्षों, साँसों से बुने
और बाँहों में गुथे सम्बन्ध भी
कभी-कभी रह जाते हैं
कितने आधे, अधबने?
भले ही अब मैं तुम्हें उम्र भर
परिभाषित करता रहूँगा,
फिर भी, अपनी ज़िन्दगी में
एक और औरत कहकर
मैं तुम्हें कभी
अपमानित नहीं करूंगा!