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जिन्हें रौशनी की ज़रूरत / हरिवंश प्रभात

जिन्हें रौशनी की ज़रूरत हो आये।
अँधेरे में हमने है दीपक जलाये।

अँधेरे का कोई कफ़न अब न ओढ़े,
नया ऐसा सूरज कोई तो उगाए।

ऐ काँटों पर जीवन बसर करने वालों,
ज़रा मुस्कुराओ, सुदिन आज आए।

सितारों-सा खेलो, बहारों-सा झूमो,
यहाँ अब न कोई भी आँसू बहाए।

ये घबराई सूनी-सी बिरहन की आँखें
वो साजन को चुपके-ही चुपके बुलाए।

वही तेरा सच्चा है ‘प्रभात’ साथी,
जो दुःख के समय में तेरे काम आए।