जिन्हें रौशनी की ज़रूरत हो आये।
अँधेरे में हमने है दीपक जलाये।
अँधेरे का कोई कफ़न अब न ओढ़े,
नया ऐसा सूरज कोई तो उगाए।
ऐ काँटों पर जीवन बसर करने वालों,
ज़रा मुस्कुराओ, सुदिन आज आए।
सितारों-सा खेलो, बहारों-सा झूमो,
यहाँ अब न कोई भी आँसू बहाए।
ये घबराई सूनी-सी बिरहन की आँखें
वो साजन को चुपके-ही चुपके बुलाए।
वही तेरा सच्चा है ‘प्रभात’ साथी,
जो दुःख के समय में तेरे काम आए।