जिन्होंने संविधान रचा
रहे होंगे कवि
संविधान-निर्माता कभी,
पुचकारकर नवजात वहमों को
पुष्ट किया होगा जवां यक़ीनों के रूप में
--कि कवि संस्थापक रहे होंगे
जीवनरक्षक परम्पराओं के,
--कि लहलहाई होगी उन्होंने
विधि-विधानों की फ़सलें,
पर, नीम-हक़ीम खतरे-जान हो गये
कब्रों में सिसकते वे कविजन
जिन्होंने संविधान रचा,
वे न कवि थे, न कलाकार,
उन्होंने कलम-शूल से
समाजोच्छेदन किया,
वर्ग-विभाजन किया,
और जाति-धर्म के
साम्राज्य स्थापित कर
उनके स्वयं-भू सम्राट हुए
और अनायास स्मृतिकार बन बैठे।