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जिप्सी लड़की (कविता) / अवधेश कुमार

साँप का फन डफली पर पड़ा
फन पर पड़ा लाल रूमाल
मैंने देखी एक जिप्सी लड़की
पहाड़ के शरदोत्सव में ।

पहाड़ के शरदोत्सव में
सीटी बजाते लड़के
सजी-धजी लड़कियाँ
नक़ली मोतियों की मालाएँ
बेचती तिब्बतनियाँ
हथरिक्शा खींचते अधेड़
भीख माँगते बच्चे
और नाक की सीध में चलता
ख़लील जिब्रान — जिप्सी लड़की के
गीत के साथ ।

जिप्सी लड़की के गीत के साथ
कव्वे की बोली और भालू का नाच
जेबकतरों और पर्यटकों का हुजूम
किराए का कमरा और दारू के
नशे में धुत्त हवलदार साहब ।

दारू के नशे में धुत्त हवलदार साहब
नश्शा... ! हिलता रूमाल और चीख़
रात की सीली धुँध में
बत्तियों की छितरी रोशनी में
हिलता है साँप का फन ।

हिलता है साँप का फन
डफली देर तक बजती है
सोई हुई जिप्सी लड़की की कुनमुनाती
टाँगों के बीच रातभर
पहाड़ के शरदोत्सव में ।

रातभर पहाड़ के शरदोत्सव में
पछाड़ मारता है साँप का फन
पहाड़ पर काला रंग चढ़ता हैं
रूमाल से निचुड़ता हुआ लाल रंग
उस लड़की के ख़ून से मिलता है ।

ख़लील जिब्रान के साथ
बर्फ़ के नीचे दबी
मैंने देखी एक जिप्सी लड़की
पहाड़ के शरदोत्सव में
पहाड़ के शरदोत्सव के बाद ।