(राग पीलू-ताल कहरवा)
जिसका मन है अमल, सौम्य; है मौन, भाव जिसके संशुद्ध।
निगृहीत है सहज, सतत जो रहता प्रभुमें नित्य निरुद्ध॥
बाह्यडम्बर शून्य सरल जीवन सादा,शुचि, रहित-बिकार।
चमत्कार को समझा जाता दूषित जहाँ, व्यर्थ, निस्सार॥
लोगोंको आकर्षित करके देना उन्हें सदा उपदेश।
बार-बार है उन्हें सुनाना, मिला हुआ प्रभु का संदेश॥
अपनेमें श्रद्धा उपजाकर करना अति उनका उपकार।
अच्छा हो, पर उक्त संतजन, करते नहीं इसे स्वीकार॥
बिना किसी भी चमत्कारके, बिना दिये कुछ भी उपदेश।
उनके मूक सत्य जीवनसे मिलता सहज दिव्य संदेश॥
होता रहता उससे पावन सहज चराचर सब संसार।
दिव्य वायुमण्डल बनता, फैलाता साविक भाव-विचार॥
सच्चे साधक बना दिव्य प्रभु-कृपा अहैतुकको आधार।
चलते दृढ़ साधन-पथपर वे, करके सभी त्याग स्वीकार॥
बाह्य प्रदर्शन-आडम्बर से रह अति दूर, छोड़ अभिमान।
शीघ्र पहुँच जाते वे दुर्लभ प्रभुके पदपर साधु महान॥