जिस सिम्त नज़र जाए, वो मुझको नज़र आए ।
हसरत है कि अब यूँ ही, ये उम्र गुज़र जाए ।
आसार हैं बारिश के, तूफाँ का अंदेशा है
मौसम का तकाज़ा है, अब कोई न घर जाए ।
तामीरों-तरक्की का, ये दौर तो है लेकिन,
ये सोच के डरता हूँ, एहसास न मर जाए ।
हो जिसका जो हक ले-ले, गुलशन में बहारों से
ये मौसमे-गुल यारों, कल जाने किधर जाए ?