Last modified on 9 जुलाई 2023, at 00:45

जीत अधूरी है / रणजीत

अभी जकड़ रक्खा हाथों को
थैली शाही क़ानूनों ने
अभी घेर रक्खा इन्साँ को
इन हैवानी नाखूनों ने
फँसे हुए हैं अभी सूर्य के रथ के पहिये
अंधकार का दलदल अभी नहीं सूखा है
वह आदिम अभिशाप अभी लागू है :
हव्वा की बेटी जन-जन कर कोस रही है
बहा-बहा कर अभी पसीना
आदम का बेटा भूखा है !
यह केवल झुटपुटा है साथी !
अभी सवेरा दूर है
झलक मात्र है उसकी यह तो
क्षितिज-रेख के नीचे अब तक थमा हुआ जो नूर है !
यह पहला पड़ाव है केवल
चहल-पहल में इसकी बहल न जाना
श्रम के बेटों और बेटियों
छले न जाना शासन की छाया के छल से
सत्ता के इस स्वर्ण-जाल में अटक न जाना
समझौते की नाजुक राहों पर चलते-चलते
कहीं लक्ष्य से अपने भटक न जाना
सरमाये के नियमों में बँधकर रहने की
वर्तमान मजबूरी है जो
कहीं उसे स्वीकार न लेना
आधी मुक्त हवा में साँसे लेकर
अपने संचित मुक्ति-बोध को मार न लेना!
यह केवल पहला हमला है
सावधान हो!
छोटी-छोटी जीतों की खुशियों में खो मत जाना
अभी लड़ाई आज़ादी की, मेरे मीत अधूरी है
केरल की यह जीत अधूरी है।