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जीना / केदारनाथ अग्रवाल

जीना
यह नहीं हुआ
जीना
जिसको तुम
कहते हो
जीना।
इशरत से
फितरत से
महफिल के
मौसम में
जीना।

शोषण के
पोषण में
चक्कर से
मक्कर से
जीना
इसे नहीं
कहते हैं
जीना।

रचनाकाल: १७-११-१९७५, रात