रोज़ सुबह उठ कर वह सबसे पहले,
अपनी पथरीली हो चुकी हथेली को देखती है,
और आँखों से लगा कर चूम लेती है ।
वह रोज़ उस शिलालेख में पढ़ना चाहती है अपना भविष्य ।
रोज़ प्राचीन होती जाती है वह, और इतिहास भी ।
उसका वर्तमान,
जीना है और सीना है ।
रोज़ सुबह उठ कर वह सबसे पहले,
अपनी पथरीली हो चुकी हथेली को देखती है,
और आँखों से लगा कर चूम लेती है ।
वह रोज़ उस शिलालेख में पढ़ना चाहती है अपना भविष्य ।
रोज़ प्राचीन होती जाती है वह, और इतिहास भी ।
उसका वर्तमान,
जीना है और सीना है ।