(राग काफी-ताल दीपचंदी)
जीभलड़ीने चोखी बाण पड़ी।
रटती रहै नाम निसदिन अब भूलै न पलक-घड़ी॥
कनै न आवै थोथी चरचा देखै परै खड़ी।
बरस रही इमरत-रस-धारा लागी सरस झड़ी॥
जनम-जनमको जहर उतर गयो पाई अमर जड़ी।
हरि किरपा, टूटै न नामकी कदे या रतन-लड़ी॥
(राग काफी-ताल दीपचंदी)
जीभलड़ीने चोखी बाण पड़ी।
रटती रहै नाम निसदिन अब भूलै न पलक-घड़ी॥
कनै न आवै थोथी चरचा देखै परै खड़ी।
बरस रही इमरत-रस-धारा लागी सरस झड़ी॥
जनम-जनमको जहर उतर गयो पाई अमर जड़ी।
हरि किरपा, टूटै न नामकी कदे या रतन-लड़ी॥