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जीवनक तात्पर्य / शम्भुनाथ मिश्र

चरैवेति-केँ मंत्र बुझि जे, डेग अपन झटकारि चलल अछि
सैह अपन जीवन-उपवनकेँ, सुखसँ सैंति-सम्हारि सकल अछि

वर्तमानकेँ कर्मक संगहि जोड़ि अपन जीवन जे जीबय
जीवनकेँ वरदान मानि जे गरल-सुधा समरस भय पीबय
अपनाकेँ गतिशील बनौलक तखनहि पैर पसारि सकल अछि

सम्मुखसँ मुख मोड़ि स्वयंकेँ जीवन रणमे अड़ि न सकल अछि
मात्र अतीतक चिन्तनटासँ जीवनमे क्यौ बढ़ि न सकल अछि
भूत भविष्यक ध्यान राखि कय पथ पर पैर सम्हारि सकल अछि

भू पर पैर, परन्तु गगनकेँ छूबाकेर छैक जँ हूबा
चोटीपर चढ़बाक हेतु जे, पोसि सकल मनमे मनसूबा
सकल परिस्थितिसँ अड़ि-लड़ि कय सबतरि झंडा गाड़ि सकल अछि

धरती माता थिकी सभक जे बूझि़ एहि परतीकेँ तोड़य
देशक हितकेँ सर्वोपरि बुझि प्रेम भावनाकेँ जे जोड़य
मोड़य नहि मुख, कान्ह लगाबय कालहुकेँ ललकरि सकल अछि
एहिठामकेर माटि पानिकेँ चानन आ गंगाजल बूझय
एक सूत्रमे सौंसे भारत जोड़ि सकी ततबेटा सूझय
बूझय-बूझय किन्तु न लूझय, जगमे शान्ति पसारि सकल अछि

मात्र कल्पनाकेर लोकमे जे न रहल आजीवन डूबल
अनुशासित राखय अपनाकेँ तकर न जीवन लागय ऊबल
पर उपकार निरत जन अनको दुखसँ पार उतारि सकल अछि