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जीवन-छाया / अज्ञेय

पुल पर झुका खड़ा मैं देख रहा हूँ,
अपनी परछाहीं
सोते के निर्मल जल पर--
तल-पर, भीतर,
नीचे पथरीले-रेतीले थल पर :
अरे, उसे ये पल-पल
भेद-भेद जाती है
कितनी उज्ज्वल
रंगारंग मछलियाँ।

इलाहाबाद, 19 दिसम्बर, 1958