मुक्त बन्दी के प्राण !
पैरें की गति शृंखल बाधित,
काया कारा-कलुषाच्छादित
पर किस विकल प्रेरणा-स्पन्दित
उद्धत उस का गान !
मुक्त बन्दी के प्राण !
अंग-अंग उस का क्षत-विह्वल
हृदय हताशाओं से घायल,
किन्तु असह्य रणातुर
उसकी आत्मा का आह्वान !
मुक्त बन्दी के प्राण !
उस की भूख-प्यास भी नियमित
उस की अन्तिम सम्पत्ति परिहृत
लज्जित पर बलिदान देखकर
उस का जीवन-दान !
मुक्त बन्दी के प्राणव !
डलहौजी, 1934