आपने
भोपे को
रावणहत्थे के
सुर में सुर मिलाकर गाते,
जीवन और संगीत को
एकाकार होते
देखा है?
पढ़ा है
कभी वह क्षण
जो गाते वक्त
उसके रोम-रोम में
तैर रहा होता है!
बिखरे बालों,
मैले-कुचैले,
फटे-पुराने वस्त्रों
और पिंडलियों पर
रींगों वाली
वह लड़की अबोध-सी
जो पास खड़ी भोपे के
लिए कोलका
सिलवर वाला
अपने काले-कलूटे-से हाथों में,
सुर से सुर को
साध रही है,
पर नजरें आँगन में
अपने पारिश्रमिक-
रोटी के टुकड़े को
भाल रही हैं।
उसकी काया में प्रवेश कर
उसका जीवन
सपने में ही सही
भोगा तो होगा
कभी आपने!
और कभी
एवड़ के बीच
रात-रात भर
खुर्राटे भरते
पर पल-पल की
खबर रखते
एवाळिए को भी तो
देखा होगा आपने।
महसूसी होगी
भेड़ों के तन से,
मल से निकली
वह भीनी-भीनी महक
नथुनों में भर उसको
पाया तो होगा कभी
स्वर्गिक आनन्द आपने!
वरना
कविता भी क्योंकर पढ़ते!
2005