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जीवन-श्रुति / विमलेश शर्मा

लिखे जाने से पहले
ज़रूरी है
उस मन की टोह लेना
जहाँ कभी
धुँआधार उलटता है
तो कभी
शांत-प्रशांत नर्मदा!
लिखे जाने से पहले
ज़रूरी है
पौधों को खाद देना
कि बढ़ सके
नन्हें पौधें निर्बाध
और झरते रहें हरसिंगार
तप्त मन पर!
लिखे जाने से पहले
ज़रूरी है
सहेजन आस-पास की
कि चलता रहे यह जगत्
समता की पगडंडी पर
बिना ऊभ-चूभ
अ-न-व-र-त!