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जीवन-संगिनी / शैलेन्द्र चौहान

हाँ, मैं
तुम पर कविता लिखूँगा

लिखूँगा बीस बरस का
अबूझ इतिहास
अनूठा महाकाव्य
असीम भूगोल और
निर्बाध बहती अजस्र
एक सदानीरा नदी की कथा

आवश्यक है
जल की
कल-कल ध्वनि को
तरंगबद्ध किया जाए

तृप्ति का बखान हो
आस्था, श्रद्धा और
समर्पण की बात हो

और यह कि
नदी को नदी कहा जाए

जन्म, मृत्यु, दर्शन, धर्म
सब यहाँ जुड़ते हैं

सरिता-कूल आकर
डूबा-उतराया जाए इनमें
पूरा जीवन
इस नदी के तीर
कैसे घाट-घाट बहता रहा

भूख प्यास, दिन उजास
शीत-कपास
अन्न की मधुर सुवास

सब कुछ तुम्हारे हाथों का
स्पर्श पाकर
मेरे जीवन-जल में
विलीन हो गया है।