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जीवन / दिनेश्वर प्रसाद

जीवन !
तुम्हें आज तक छलता रहा

एक दिन आएगी मौत
जब दबे पाँव
कौन करेगा प्रश्न
मौन करने वाले,
कौन कर देगा
निरुत्तर मुझे ?

तुम्हीं तो, तुम्हीं तो
जीवन !

(जून, 1992)