जीवन का हर पल है तुम से, तुमको ही अर्पित जीवन हूँ ।
रोम-रोम में कस्तूरी ज्यों, आते-जाते श्वासों में तुम,
कविता के उर के स्पंदन हो, बन कर स्वर सब गीतों में तुम ,
संझा दीपक जलता तुम संग, रैना बाती तुम संग बुझती,
सुबह भोर की किरणें भी आँखों से सपन तुम्हारे चुनतीं,
हृदयांगन में तुलसी बन कर महकूँ मैं चिर संग तुम्हारे,
सुख में हो दुख में हो चाहे, जो माँगो वह अपनापन हूँ।
चंदा बिन आभा के जैसे, यूँ मैं तुम्हारी स्मृति बिन हूँ,
वीणा हो झंकार रहित जब, वैसे प्राणहीन जीवन हूँ ,
लहरें बिन सागर कब सागर, कब छाया बिन तरुवर होता,
केशव-मन्दिर में कब कोई राधा बिन चरणों को धोता ,
कोयल जब हो कूक रहित औ’ मधुबन फूलों से वंचित हो,
तुम्हारे संबल बिन जैसे नीरस जीवन, सूनापन हूँ।
मेरे नयनों में काजल बन चंचलता को बाँध लिया कब?
अश्रु धार में धुलकर पावन पूजा का यह स्थान लिया कब?
नियति डोर में बँध कर जाने कितने रंग के ताने-बाने,
आड़े-तिरछे स्वप्न गढ़े फिर राह चले हम अदृश अजाने,
तेजस्मय वह रूप तुम्हारा अंकित है मेरे मानस पर
बसा आत्मन कभी सत्य हो, मन ही मन नीरव याचन हूँ।
जीवन का हर पल है तुम से, तुम को ही अर्पित जीवन हूँ ।