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जीवन का है अर्थ अनोखा / देवी नांगरानी

जीवन का है अर्थ अनोखा
इसको व्यर्थ गँवाते क्यो हो?

छाया घनी है जीवन-वट की
धूप में ख़ुद को तपाते क्यों हो?

देखो ऋतु वासंती आई
पतझड़ इसको बनाते क्यों हो?

सुलझी हुई इस डोर को फिर से
नादानो, उलझाते क्यों हो?

देह विदेह के अंतरमन में
गहरा अंधेरा लाते क्यों हो?

रचना की इस सुंदरता में
शब्द असुंदर लाते क्यों हो?

कोयल कुहु कुहु तान सुनाती
लोगो शोर मचाते क्यों हो?