जीवन की सार्थकता / सलिल तोपासी

अच्छे पलों को तस्वीरों में बन्द कर के
आदमी सदियों पुरानी यादों को जीता है,
कभी उन बीती हुई बुरी यादों की ओर
उस का ध्यान क्यों नहीं जाता है?
आदमी के जीवन में कहीं न कहीं
उन बेदर्द पलों का कोई मोल तो होगा
जिसके बाद हर हसीन पल, याद की बारी आती है,
उसी को आदमी भूल जाता है।
आखिर क्यों?
वे गलतियाँ, तमाम बेरुखीपन और नाराज़गी
सब कुछ अनुभव ही तो था
एक नए खुशहाल पल के इंतज़ार में ।
बीते हुए कल को भूल जाने में ही भलाई है
लेकिन उसे भुलाने के लिए याद तो करना चाहिए?
मीठे पलों के सहारे आदमी जीवन बिता लेता है
किंतु
खट्टे और कड़वे पलों से आदमी सीखता है,
समझता है और जीवन को जीता है।

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