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जीवन चाहता जैसा / महेन्द्र भटनागर

जीवन चाहता जैसा
उसे पाने
अभी भी मैं प्रतीक्षा में!
सहज हो जी रहा
इस आस पर, विश्वास पर
जैसा कि जीवन चाहता —
आएगा … ज़रूर-ज़रूर आएगा

एक दिन!

चाहता जो गीत मैं गाना
विकल रचना-चेतना में
भावना-विह्वल
सजग जीवित रहेगा,
और उतरेगा उसी लय में

किसी भी क्षण

जिस तरह मैं
चाहता हूँ गुनगुनाना!

ऊमस-भरा
बदला नहीं मौसम,
वांछित
बरसता नेह का सावन नहीं आया,
वांछित
सरस रंगों भरा माधव नहीं छाया,

फुहारो! मोह-रागो!
बाट जोहूंगा तुम्हारी,
एक दिन
सच, रिमझिमाएगा
अनेक-अनेक मेघों से लदा आकाश!
दहकेंगे हज़ारों लाल-लाल पलाश!