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जीवन तरिणी / विनीत मोहन औदिच्य


मेरी इस जीवन तरिणी को एक सुरक्षित जलभाग दे दो
हे ईश्वर ! तरंग विहीन मेरे शून्य कंठ में तृप्ति का राग दे दो
द्वंद्व है हृदय में युगों से पाप-पुण्य का दे दो इसको स्थिरता
उन्मत्त समय की अति तीव्र गति को दे दो धरा सी धीरता।

मैं कल भी था दीन, आज भी हूँ, चढ़ा भौतिकता का ज्वर
हे ईश्वर! निष्फल कामनाओं को दे दो तुष्टि का सौम्य स्वर
शिवालय के तपस्वी पत्थर पर बैठा है जो दीर्घ काल से
मिटा दो नित्य जलती-बुझती अतृप्त इच्छा रेखा भाल से ।

नदी की धारा सी चलती यह पगडंडी कहीं तो होगी समाप्त
पृथ्वी पर प्रतीक्षा की, पुनः होगी स्वर्णिम सी ज्योति व्याप्त
हे ईश्वर! गुंजन तुम्हारे नाम का हृदय में होगा जब स्वरित
तब रचूँगा मैं खंडकाव्य अंतरिक्ष का..तमस होगा तिरोहित ।


अँजुरी में लिये कुछ क्षण स्मृतिवर्षों के, जब करूँगा मैं प्रस्थान
स्वर्गीय आलिंगनों से होगा मेरे पुण्य फलों का आत्मिक मिलान।
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