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जीवन हरा है / नवनीत पाण्डे

हवा-प्रकाश-पानी
सब कुछ तो मिला
फ़िर भी हरा
नहीं रहा- हरा
पड़ गया पीला
जड़ हो गई जड़
नहीं
मुझे नहीं स्वीकार
हार
मैं दूंगा
अपनी आंखों का पानी
सांसों की हवा
अस्तित्त्व का प्रकाश
जीतेगा विश्वास
जीवन हरा है
न कभी मरता है
न कभी मरा है