Last modified on 16 अप्रैल 2018, at 17:56

जी करता है / सुनीता जैन

जी करता है,
क्या कभी
तुम्हारा भी?

पेड़ों के नीचे
फिर टाट बिछे,
मास्टर जी कुर्सी पर
बैठे हों
और स्लेट पर
एक दूनी दो
दो दूनी चार
लिख-लिख के
रटते हों

कौए की जब
बींठ गिरे तो
पीछे उसके
भगते हों

भूल गए यदि कभी पाठ तो
कनखी-कनखी
तकते हों

मिली अगर
‘शाबाश’ पीठ पर
गुब्बारे-सा
फूल गए दिखते हों

जी करता है!