जुम्मे को इतवार बना कर क्या होगा,
ये बातें बेकार बना कर क्या होगा।
लाखों गुल मुरझाये हों जब दुनिया के,
घर में इक गुलजार बना कर क्या होगा।
कश्ती अगर डुबोने वाले अपने हैं,
फिर कोई पतवार बना कर क्या होगा।
हाथों का बल अगर हमारे छूट गया,
आँखों को अँगार बना कर क्या होगा।
तन्हाई से इश्क हो गया जब हमको,
भीड़ का फिर संसार बना कर क्या होगा।
हुई दोस्ती जब लाचारी से तेरी,
फिर कोई त्योहार बना कर क्या होगा।