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जूँ गुल अज़-बसके जुनूँ है मेरा सामान के / वली 'उज़लत'

जूँ गुल अज़-बसके जुनूँ है मेरा सामान के सात
चाक करता हूँ मैं सीने को गिरेबान के सात

चश्म-ए-तर हैं मेरी सहरा है जुनूँ की ममनूँ
रब्त है रोने कूँ मेरे उसी दामान के सात

बे-ख़ुदी का है मज़ा शोर-ए-असीरी से मुझे
रंग उड़े है मेरा ज़ंजीर की अफ़ग़ान के सात

जूँ बघूला हूँ मैं मिन्नत-कश-ए-सहरा-गर्दी
ज़िंदगानी है मेरी सैर-ए-बयाबान के सात

‘उज़लत’ इस बाग़ में लाला सा हूँ मैं दर्द नसीब
दिल-ए-ज़ख़्मी से ऊगा दाग़ नमक-दान के सात