कभी कभी
जूते छोटे हो जाते हैं
या कहिये कि पांव बड़े हो जाते हैं,
छोटे जूतों में कसमसाते पाँव
दिमाग से बाहर आने को आमादा विचारों
जैसे होते हैं,
दोनों को ही बांधे रखना
मुश्किल और गैर-वाजिब है,
ये द्वन्द थम जाता है जब
खलबली मचाते विचार ढूँढ़ते हैं एक
माकूल शक्ल
और शांत हो जाते हैं,
और पाँव पा जाते हैं एक नया जूता...