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जूनी मटकी / ओम पुरोहित ‘कागद’

जूनी मटकी
जब पूछ बैठती है
जूने कुंए से
जल का रंग
तब
केवल ताक कर
रह जाता है मौन
अपने तन पर लगे
जल के सदियों पुराने
लहरीले रंग
और
तब
मटकी की कुंआरी प्यास
तोड़ देती है दम\देखकर
कुंए में फ़ैला
दूर-दूर तक अंधा मौन।