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जेठी करेह / कालीकान्त झा ‘बूच’

गय जेठी करेह तोॅ सवेरे उधिआइ छेॅ
वरखा तऽ हेठै भेलै अनेरे उपलाइ छेॅ

तोरो वाटर वेज बनल छौ,
डेभलाॅप मेन्टक डेज बनल छौ,
बहुत ऊॅच खतराक विन्दु गय,
एना किए अकुलाइ छेॅ ?

ई इन्होर पानि चमकै छौ,
मोर - मोर पर भौरी दै छौ,
काटि - काटि डीहक करेज केॅ,
तऽरे तऽर समाइ छेॅ

बहकल तोहर रेतक धक्का,
चहकल हम्मर धैर्यक पक्का,
सत्यानाश सभक कऽ देवेॅ
आवै छेॅ आ जाइ छेॅ,

जत्र - तत्र भऽ जेतौ मौॅका,
इंजीनियर बनतौ बुरिबौका,
वान्हि तोड़ि कऽ प्रलय मचेवेॅ
एहने दाइ बुझाइ छेॅ
गय