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जेब कतरा / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

चौराहे पर सरेशाम


एक बड़े जेबकतरे ने


काट ली मेरी जेब ।

वह जानता था-

मेरी जेब में थी

मेरे खून-पसीने की कमाई ।

ऐसी ही जेबें काटने में

जेबकतरे

एक निर्दय सुख का अनुभव करते हैं ।

यह मैं जानता हूँ ,

वह भी जानता है ।

मैं सोचता हूँ-

प्रतिकार करूँ औरौं की तरह

काटूँ मैं भी जेब

किसी मासूम की ।


नहीं ,हर्गिज़ नहीं ।

मैं अपना बरसों का


तप छोड़ नहीं सकता

जो व्रत भूख में भी नहीं टूटा,

उसे तोड़ नहीं सकता ।


मैं किसी बच्चे का अन्न

नहीं चुरा सकता ,

मैं किसी बच्चे के सपनों पर

चाकू नहीं चला सकता ,

किसी का विश्वास

नहीं तोड़ सकता ।

मैंने तो हमेशा लगाएँ हैं

छायादार पेड़ ,

मैं किसी के आँगन में

बबूल उगा नहीं सकता ।

मेरा विश्वास है-

वह जेबकतरा

ज़रूर धरा जाएगा ,

मेरी पाई-पाई चुकाएगा

मैंने देखा है-

खून-पसीने की कमाई

कभी चुराई नहीं जा सकती ,

चुराई जाए तो

सात तालों में

छुपाई नहीं जा सकती ।