जैसे-जैसे दिन बीतेंगे, सम्भव है
मैं अकेला होता जाऊंगा
जैसे-जैसे वर्ष गुज़रेंगे, सम्भव है
मैं शेष नहीं हूँ, समझ जाऊंगा
जैसे-जैसे बदलेंगी शताब्दियाँ, सम्भव है
मैं लोगों की स्मृति से गुम हो जाऊंगा
पर हो न ऎसा कि दिन बीतें जैसे-जैसे
मेरे जीवन में शर्म बढ़े वैसे-वैसे
पर हो न ऎसा कि वर्ष गुजरें जैसे-जैसे
ताश का गुलाम बन जाएँ हम वैसे-वैसे
पर हो न ऎसा कि शताब्दियाँ बदलें जैसे-जैसे
हमारी कब्रों पर थूकें लोग वैसे-वैसे