जैसे महका फूल लगे ।
ग़म कितना माक़ूल लगे ।
एक खिलौना टूट गया,
सहमी-सहमी भूल लगे ।
कभी पढ़ाई ख़त्म न हो,
जीवन वो स्कूल लगे ।
उसके पीछे हो लूँ मैं,
वो इतना अनुकूल लगे ।
आज़ादी का मंज़र भी।
बढ़ता हुआ बबूल लगे ।
जैसे महका फूल लगे ।
ग़म कितना माक़ूल लगे ।
एक खिलौना टूट गया,
सहमी-सहमी भूल लगे ।
कभी पढ़ाई ख़त्म न हो,
जीवन वो स्कूल लगे ।
उसके पीछे हो लूँ मैं,
वो इतना अनुकूल लगे ।
आज़ादी का मंज़र भी।
बढ़ता हुआ बबूल लगे ।