जोखिम / उमा शंकर सिंह परमार

दो खम्भों के बीच
मुरेथदार रस्सी
          डाल दो

बाँधकर पैरों में घुँघरू
सर पे रजवाड़ी साफा
ढपाक-ढपाक ढोल के साथ
ख़ुद को
               उछाल दो

बज उठेंगी तालियाँ
उछल जाएँगे सिक्के
हार जाएगी नियति
कुन्द हो जाएगी करुणा
की धार, कौतुहल की
          ढाल दो
 
साथी आदमख़ोर भूख से
बचना है तो
मौत से लड़ने के तरीके
आजमाने की आदत
            डाल लो

बाज़ार में इंसान नही
जोखिम चमकता है

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