Last modified on 30 मई 2018, at 16:55

जोख्यूं लख अनेक / मोहम्मद सद्दीक

जीव-जीव तो एक
जीव नै जोख्यूं लख अनेक
जीव तन्नै जीणो पड़सी रे
काया थारी लीर-लीर
तन्नै सीणो पड़सी रे।।

ऊंडी आंच तपी काया नै
सूंगी हाट बिकाणो ळै
इखरी बिखरी इण बसती रो
कुणसो ठौड़ ठिकाणो है
कुण आंक लो मोल तोल
थारा हीणो पड़सी रे।।

तूम्बा-बेल फळी धरती पर
खार घोळ दी खेतां में
थोर थरपदी पगडांडी पर
भरम घुळै लो हेतां में
और हवा में जैर घोळ
तन्नै पीणो पड़सी रे।।

हीणो हाण जलम दुखियारो
घास बणै अर लोग चरै
जीणो जिणरै हाथ नईं बस
जलम एक सौ बार मरै
शंकर अर सुकरात बण्यां
विष पीणा पड़सी रे
जीव तन्नै जीणो पड़सी रे।।