तरुणाई के प्रथम चरण में जोड़ी टूट गई,
फूली हुई रात की रानी, प्रातः रूठ गई!
गन्ध बनी, साँसों भर आई
छन्द बनी फूलों पर छाई
बन आनन्द धूलि पर बिखरी
यौवन के तुतलाते वैभव, सन्ध्या लूट गई!
फूलों भरी रात की रानी सहसा रूठ गई।
मुसुकों भरी मनोरम बेली
यादों की डालों पर खेली
गिरी सभी साधें अलबेली
ऊँचे पर उठती अभिनवता पथ में छूट गई
फूली हुई रात की रानी, कैसे रूठ गई?
रचनाकाल: पातल पानी रेलवे स्टेशन-१९५२