Last modified on 6 अगस्त 2019, at 20:19

जोत जलाएँ / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

चलो बन्धु
मजबूत करे हम
सम्बन्धो की जीर्ण डोर को

छोड़ गई घर
कभी पीढ़ियाँ
फिर से अपने घर को लौटें
तरह-तरह के
पहन रखे जो
मिले छोड़कर सभी मुखौटे

चलो बन्धु
हम पुन: उगाये
सम्बन्धों की नई भोर को

समय निकालें
पुरखों के सँग
हृदय खोलकर फिर बतियायें
उनके सूने
हिरदय में फिर
विश्वासों की जोत जलाएँ

चलो बन्धु
हम मूल्य बचाएँ
मारें ढोंगी दम्भ चोर को

ऊँच-नीच की
कहासुनी की
कलुषित बातों को हम टालें
गाँठे खोलें
मीठा बोलें
फिर से बिगड़ी बात सँभालें

आडम्बर को
अफवाहो कों
काटें जड़ से शत्रु शोर को