हम वही हैं जो हम नहीं हैं
भाव जो कभी मूर्त न हुए
शब्द जो कभी कहे नहीं गए
जीने की व्यथा में डूबे हुए स्वर
जो ध्वनित नहीं हो पाए
राग नहीं बने
जीवन के अचीन्हे सीमान्त के
चरम क्षण
होने न होने के
अपनी अनन्तता में ठहरे रहे
निरन्तर अपनी अतीन्द्रिय सम्पूर्णता में
जीते रहे
पर बीते नहीं भोगे नहीं गए...
आकार-रूप-हीन आघात
जो बस सहे ही गए
अनजाने-अनचाहे
आँखों की कोरों में
उमड़े हुए आँसू-से अनदीखे
अटके ही रहे झरे नहीं
वही हैं हम
जो नहीं हैं ।
(1963 में दिल्ली में रचित)