Last modified on 16 फ़रवरी 2020, at 23:21

ज्ञानोबा / नामदेव ढसाल

ज्ञानोबा-कम-स-कम अब तो दरवाज़ा खोलिए
बहुत देर तक इन्तज़ार करवाते
खड़ा रखा आपने मुक्ताबाई को
सात सौ साल बीत गए इस बात को
हमारे लिए कुछ भी कर पाना सम्भव नहीं हो पाया आपसे
और आप के लिए सम्भव था भी नहीं
शुरुआत ही इस तरह से की ऊँ नमोजी आद्या।।
वेद प्रतिपाद्या
ज्ञानोबा पुरुषसूक्त का बारहवाँ मन्त्र
नहीं भूला जाता है हमसे
ज्ञानोबा छुटकी के लिए तो कुछ करें

कितनी आसानी से भूल गए माँ-बाप और भाई-बहनों को
और आपको भी दी गई यातनाएँ
पीठ आपकी छलनी की उन्होंने और भैंसे के पीठ पर निशान
जिस प्रस्थापित व्यवस्था ने आपकी ये हालत की
उन प्रस्थापितों की मान्यता प्राप्त कर
ज्ञानोबा आपको क्या हासिल हुआ ?

समस्त ब्रम्ह
समझने के बाद
ये इस तरह अपनी गर्दन झुकाना ठीक है क्या ?
धृतराष्ट्र हृतराष्ट्र की मारामारी की व्याख्या करना
क्या आपको शोभा देता है ?
प्रस्थान त्रयी को कान्धे पर लेकर चिद्ववाद की तरफ़ गए
द्वैत का खण्डन कर अद्वैत की ओर मुड़े
वहाँ भी मन न रमा तो गूढ़ द्वैत में गए
ज्ञानोबा, अनभिज्ञ की दीवार पर बैठ कर क्या कभी कोई
आलन्दी पहुँचा है ?

तुकोबा की तरह बीवी-बच्चे होते तो
आकाश की दीवार को भी
आपने तोड़ दिया होता.
ज्ञानोबा अचानक ऐसा क्या हुआ
कि हमेशा के लिए भीतर जाकर बैठ गए
समाधि का पत्थर भी ख़ुद ही खींच लिया
अन्त भी शुरुआत की तरह ही किया

जात, वर्ण, धर्म की नदियाँ-पहाड़ लाँघकर ज्ञानोबा
आप नहीं जा सके अमृतानुभव के पास
दरवाज़ा बन्द कर जिस तरह पहली बार रूठकर बैठे थे
वो रूठना हमेशा के लिए रह गया ।

समाधि की घटना तो फिर बहुत बाद की
ज्ञानोबा उससे न तो आपका कुछ भला हुआ और
न हमारा ही
उन्होंने तुकोबा को वैकुण्ठ पहुँचाया
और चोखोबा को पँढरी के दर पर पाँवों तले
रौन्द-रौन्द कर मारा
ज्ञानोबा, कम-स-कम अब तो दरवाज़ा खोलिए ।

मूल मराठी भाषा से अनुवाद : संजय भिसे