थम जायेगी धरा धुरी पर, रवि-रथ-चक्र रूकेगा
मर्यादा का बाँध तोड़ कर सिन्धु उमड़, उछलेगा
टूट-टूट कर तारे यदि धरती का दामन भर दें
फिर भी मेरे भारत का यह झण्डा नहीं झुकेगा
फड़क रही है भुजा, रगों में खौल रहा इस्पात
अग्नि-बाण छूटते दृगों से, थर-थर कम्पित गात
साँसों में तूफान, चरण ताण्डव-नर्तन में लीन
रौद्र रूप मेरे भारत का देख अभागे चीन !
जहाँ जली जौहर की ज्वाला यह वह देश अकेला
सौ-सौ सिर काटा करता था एक वीर बुंदेला
नर-मुण्डों की जहाँ घरों में सजती वंदनवार
वीर-प्रसू यह भूमि, क्लीव से कैस सकती हार !
यह धरती राणा-सुभाष-से वीरों की थाती है
सिर पर कफन लपेटे हैं जो, गज भर की छाती है
जिनसे टकरा कर तोपों के तवे पिघल जाते हैं
जिनका छूकर संगीनों की नोंक टूट जाती है
सिर पर हिम का मुकुट, चरण छू रहा सिन्धु का जल है
बाँहों को चालीस कोटि जूझारों का सम्बल है
देख रहा है चकित विश्व भारत का रूप अनोखा
‘एक हाथ में कमल, दूसरे में प्रज्वलित अनल है’
हम उतने उदार जितना दरिया का दिल होता है
पत्थर की छाती के नीचे अमिय-वेग सोता है
हम दधिचि के पुत्र, हड्डियों से आयुध गढ़ते हैं
महाकाल के मस्तक पर चढ़ मरण-मंत्र पढ़ते हैं
यह ऋषियों की भूमि, स्वर्ग जिसके चरणों की धूल
जिसके चरणों पर न्यौछावर सूर्य-च्रंद के फूल
ओ पापी ! तूने डाली उस पर ही कलुषित छाँह !
तुझे राख कर देगा तेरे ही पापों का दाह
परशुराम की नहीं प्रतीक्षा आज हमारे बल को
हम चालीस कोटि जूझारों के पुंसत्व-अनक को
चीन ! तुम्हारी कुटिल चुनौती करते हम स्वीकार
दसों दिशाओं में गुंजित भारत की जय-जयकार