सबने ख़ूब मिठाई खाई,
नए नए इस साल में।
झब्बू भैया रूठे बैठे,
थे अब तक भोपाल में।
गए साल में झब्बन के संग,
में छिंदवाड़ा छोड़ा था।
जिस घोड़े पर गए बैठकर,
चाबी वाला घोड़ा था।
नहीं ठीक से चल पाया था,
लंगड़ापन था चाल में।
खूब मनाया झब्बू भैया,
नए साल में घर आओ।
मिट्टी की गुड़ियों के हाथों,
का हलुआ तुम भी खाओ।
पर उनके स्वर थे बदले से,
नहीं दिखे थे ताल में।
तभी अचानक शाम ढले ही,
खट खट-खट का स्वर आया।
सबने देखा आसमान से,
झब्बू का घो्ड़ा आया।
बजा तालियाँ लगे नाचने,
सभी खिलौने हाल में।