Last modified on 3 जुलाई 2010, at 09:38

झरते हैं फूल-पात / तारादत्त निर्विरोध

झरते हैं फूल-पात
डाली से,
गंधाते शूल हैं
मौसम की गाली से

एक नहीं गंध
एक नहीं राग-रंग,
सबके हैं
खिलने के
अलग-अलग ढंग
वृक्षों के
हालचाल
पूछें क्यों माली से

सूखे से कानन में
मलयज के गीत,
लगते बेमानी-से
अर्थहीन
लय के
शब्दहीन-संगीत

चलता है कामकाज
अक्षरों के राज में
शब्दों के हल्लो से,
अर्थों की ताली से