Last modified on 20 फ़रवरी 2017, at 13:06

झरना / श्रीप्रसाद

बड़े वेग से झरना उतरा
पर्वत पर से
दुनिया में कुछ करने को
निकला है घर से

दृढ़ संकल्प, कठोर लक्ष्य
बस एक बनाए
चाहे कुछ भी करे
काम औरों के आए
कितना बल है, कहीं ठहरना
नहीं जानता
आगे बढ़ना, एक ध्येय
बस यही मानता

प्यास बुझाता पेड़ों की
चिड़ियों की, सबकी
हर मनुष्य की, हर पशु की
हर नन्हे कण की

निर्मल, उज्ज्वल, वेगभरा
बस बढ़ता जाता
लहर उठाता, चंचल, कलकल
छलछल गाता

ऊँचे पर से गिरता झरना
बड़ा निडर है
आता पर्वत पर से
मगर कहाँ पर घर है

झरना है मस्ती का
खुशियों का झरना है
इसको सूखेपन में
हरियाली भरना है।