Last modified on 29 जून 2017, at 17:10

झर्र बिलैया! / योगेन्द्र दत्त शर्मा

आओ, मिलकर धूम मचाएँ,
इसे चिढ़ाएँ, उसे बिराएँ,
कहें अँगूठा दिखा-दिखाकर
टिल-लिल-लिल-ली झर्र बिलैया!

बंटी को आवाज लगाएँ,
और कहीं जाकर छिप जाएँ,
रहे ढूँढ़ता इधर-उधर वह,
पर हम उसके हाथ न आएँ।

फिर पीछे से आकर पूछें-
‘‘कैसी रही, बता रे भैया!’’
टिल-लिल-लिल-ली झर्र बिलैया!

यहाँ-वहाँ उसको दौड़ाएँ,
घुमा-घुमाकर खूब छकाएँ,
वह तो भागे दूर-दूर तक,
पर हम आस-पास मँडराएँ।

जब वह थक जाए, तो नाचें
ठुमक-ठुमक-ठुम, ता-ता-थैया!
टिल-लिल-लिल-ली झर्र बिलैया!