जैसे पहाड़ पर
घनी अन्धेरी रात में
गिरती है बर्फ़
चुपचाप
कुछ उसी तरह
मेरे भीतर झलकता
हुआ शब्द
अन्धेरा और बर्फ़
पिघलते हैं
धीरे धीरे धीरे
लेकिन शब्द
भीतर से झलकता हुआ
व्याप जाता है
सुबह होने तक
पहाड़ियों की शिरा शिरा में