साँस रोके पड़ा है चुपचाप
झील में भूगोल जंगल का
मछलियाँ दुहरे किनारों पर लगा कर कान
सुन रही हैं चपल चंचल झींगुरों की तान
बींधता अहसास पल-पल का
बीच जल में, हाथ ऊपर, हेमवर्णी फूल
लहरियों पर डोलता पुरइन भरा स्कूल
दुख जिसे छूटा नहीं तल का
डाल पर बैठे विहग को आज पहली बार
घाव जैसा लग रहा है झील का विस्तार
क़ैद जिसमें बिम्ब अंचल का