झूठा मीठे वचन कहि, ॠण उधार ले जाय।
लेत परम सुख उपजै, लैके दियो न जाय॥
लैके दियो न जाय, ऊँच अरु नीच बतावै।
ॠण उधार की रीति, मांगते मारन धावै॥
कह गिरिधर कविराय, जानी रह मन में रूठा।
बहुत दिना हो जाय, कहै तेरो कागज झूठा॥
झूठा मीठे वचन कहि, ॠण उधार ले जाय।
लेत परम सुख उपजै, लैके दियो न जाय॥
लैके दियो न जाय, ऊँच अरु नीच बतावै।
ॠण उधार की रीति, मांगते मारन धावै॥
कह गिरिधर कविराय, जानी रह मन में रूठा।
बहुत दिना हो जाय, कहै तेरो कागज झूठा॥