हम जैसे लोगों का
ठौर क्या ?
ठिकाना क्या ?
भूख प्यास
पीड़ाओं ने
झिड़की दे-देकर पाला
हमसे है दूर
सुखद भोर का उजाला
यह कहने लिखने में
लाज क्या ?
लजाना क्या ?
पाँव मिले
भीलों जैसे अरूप
सौ भटकन वाले
इसी वज़ह
राजभवन से अक्सर
हम गए निकाले
यह सच है इसमें अब
झूठ क्या ?
बहाना क्या ?