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झूमरली गीत / भील

भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जमना किनारे कानो धेन चरावे,
राधाराणी राधाराणी पाणी जावे हो राज।
माता जसोदा रो कानूड़ो।

- श्रीकृष्णजी की कान की झूमर राजधाजी ने ले ली थी, उसी पर गीत रचा गया। श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे गौर चारण हेतु जाते हैं, राधा रानी भी यमुना पर जल भरने जाती हैं। माता यशोदा के श्रीकृष्ण।

जमना किनारे कानो बन्सी वजावे,
झिणि झिणि राग सुणावे हो राज।
माता यशोदा रो कानूड़ो।

- यमुना के किनारे गौओं को चराते हुए श्रीकृष्ण मधुर-मधुर राम सुनाते हैं।

हाथ पग धोवता गळनो निचवता, कानूड़ा रे छाटो लाग्यो हो राज।
आंगळी पकड़ी ने पुणचो पकड्यो, हार गळा रो लीदो हो राज।
मारी ककरिया फोड़ी गगरिया, दूर जइ ऊबो कानूड़ो हो राज।
माता जसोदा रो कानूड़ो।

- राधा ने पानी की गागर भरी और पानी छानने का गलना धोया, हाथ-पैर धोये, श्रीकृष्ण पास ही खड़े थे, उन पर पानी के छींटे लगे। छींटे लगने से श्रीकृष्ण को राधा से मजाक करने का बहाना मिल गया। राधा ने भी जानकर उन पर छींटे उड़ाए थे। पानी के छींटे लगते ही श्रीकृष्ण ने राधाजी की अँगुली पकड़कर पोंची
पकड़ी और उनके गले का हार निकालकर कंकड़ मारकर गगरिया फोड़ दी और दूर एक तरफ जाकर खड़े हो गये। इतने में बहुत सी गोपियाँ आ गईं। राधा ने उन्हें बताया कि कान्हा ने मेरा हार निकाल लिया। माँ लड़ेगी तो क्या उत्तर दूँगी? गोपियांे ने मशविरा किया और पानी लेकर घर की ओर चल पड़ी। सभी ने मिलकर
उपाय सोचा कि कान्हा की झूमर कीमती है, इसकी झूमर निकाल लो। गोपियों ने मटकिया उतारी और कुंज गली के गन्ने लेकर रास्ते में खाने लग गई। गोपियांे ने विचार किया कि कान्हा गन्ने का शौकीन है, गन्ना खाने के लिये बुलाना है और सभी को मिलकर पकड़ना है। राधा झूमर निकालेगी और इसके पास रहेगी। कान्हा
गौयें लेकर आये, गोपियों ने कहा-

कुंज गळी रो हांटो मीठो मीठो, गांठ गांठ रो रस न्यारो न्यारो न्यारो रे।
आवो कान्हा हांटो खइलो, देखो हांटा रो रस मीठो रे,
मीठो मीठो मीठो रे।

- कान्हा गन्ने की लालच में उनके बीच आ गया। गोपियाँ बोलीं- इस गन्ने का स्वाद नहीं चखा, इसकी पेर-पेर का रस अलग-अलग है। कान्हा ने कहा- थोड़ा सा गन्ना मुझे भी दो। गोपियों ने एक पेर तोड़कर दी, उन्हें गन्ना बहुत मीठा लगा और कहा- थोड़ा और दे दो। इतने में गोपियों ने उन्हें घेर लिया और राधा से कहा- इसकी झूमर निकाल ले। राधा ने झूमर निकाल ली और गोपियों के साथ चलती बनी।

- कान्हा गायें घर ले गया और बाड़े में प्रवेश कराकर घर के ओटले पर खड़ा हो गया कि यशोदा माता कान में झूमर न देखकर पूछेगी तो क्या उत्तर दूँगा?

कान्हो ऊबो घर रा ओटख् ऊबो ओटे ओट अण झूमरी रा कारणें।
कान्हो लोटे लोटे धूळा में, झूमर पाई वे तो दीजो।

- कान्हा ओटले पर खड़ा रहा और धूल में लोटने लगा और रो-रो कर कहने लगा- मेरी झूमर गिर गई है किसी को मिली हो तो दे दो। यशोदाजी बाहर निकलीं और कहने लगीं-

कान्हा मूंडो धोइली माखण खइलो, घमी गी तो घमणें दो
कान्हा ऊबके घूड़इ दूँ मोटी मोटी मोटी।
म्हारा कान्ह कुँवर री झूमर कोई पाई वे तो दीजो लालजी
लादी वे तो दीजो, म्हारा भोळा कान्ह री झूमर कोई पाई वे तो दीजो।

- यशोदाजी कान्हा से कहती हैं कि- कान्हा! मुँह धो लो, मक्खन खा लो, गुम गई तो गुमने दो अबकी बार बड़ी झूमर घड़वा दूँगी। वे सभी से कहती हैं कि- मेरे भोले कान्हा की झूमर किसी को मिली हो तो दे देना। कान्हा बात को छिपा रहा है सच नहीं बोल रहा है कि मैंने राधा का हार छीन लिया और राधा ने मेरी झूमर छीन ली। वह माता से कहता है कि- गायें लड़ने लगीं मैं उनके बीच में आकर धूल मंे गिर पड़ा और झूमर निकलकर गिर पड़ी, खूब ढूँढ़ी पर न मिली। कान्हा माँ से पूछता है कि झूमर कितने रुपये की थी? माता कहती हैं-

एरे रे मेरे हीरा जड़िय, विचमें सोवण धागो।
म्हारा कान्ह कुँवरी झूमरी में, लाख रूप्यो लागो।
झूमर पाई वे तो दीजो, म्हारा कान्ह कुँवर री झूमरी,
कोइ ने लादी वे तो दीजो।
एरे रे मेरे हीरा जड़िया, विचमंे लालां पोई,
म्हारा कान्ह कुँवर री झूमरी, दड़ियां खेलत खोई खोई खोई।
झूमर पाई वे तो दीजो, झूमर लादी वे तो दीजो।
म्हारा नखराळा री झूमरी कोई पाई वे तो दीजो।

- यशोदाजी कहती हैं कि- झूमरी के आसपास हीरे जड़े हुए हैं और सोने के धागे से पिरोई हुई है। उसके बीच में लालें भी पिरोई हुई हैं। झूमरी में लाख रुपये लगे हैं। लोगों से कहती हैं कि- मेरे कान्हा की झूमरी गेंद खेलते हुए गुम गई है। मेरे नखराले की झूमर किसी को मिली हो तो देना। जनसमूह एकत्रित हो गया क्योंकि
कान्हा की झूमर और वह भी हीरे मोती और लाल जड़ी हुई लाख रुपये की।

यशोदा ने विचार किया कि ऐसे तो झूमर मिलेगी नहीं। नारदजी मथुरा में आये हुये हैं उन्हें बुला लो तो ही झूमर मिलेगी।

मथुरा रे नगरी कागद मेल्यो, नारद ने बुलाओ।
मथुरा रे नगरी कागद मेल्यो, नारद दवड्यो आयो।
खुसी मनाओ मन रा माहीं, कान कुँवर री झूमरी राधा वना पावे नि।
म्हारा...

- यशोदा ने नारदजी को पत्र लिखा, नारदजी दौड़े आये, उन्हें बात बताई। नारदजी बोले- सभी मन में खुशी मनाओ, कृष्ण की झूमर राधा के बिना नहीं मिलेगी। राधा को बुलवाया और कहा- झूमर कहाँ है? राधा ने कहा- मैंने नहीं ली। नारदजी ने कहा- झूमर तूने ही ली है, दे दो। राधा कहती है- मैंने नहीं ली है, आप लोग
चाहें तो-

काळी देह ती नाग बुलइ लो, झूटी ब्यूं तो डसेला

-कालिया दह से नाग बुलावो और मेरे गले में डालो, मैं झूठ बोल रही होऊँगी तो मुझे डसेगा।

धमण धमई दो गोळा तपय दो, झूटा वे वने दीजो।
झूमर पाई वे तो दीजो...।

- राधा कहती हैं- नहीं मानो तो भट्टी सुलगाओ और लोहे के गोले गरम करके मेरे हाथ में दे दो, मैंने ली होगी तो मेरे हाथ जलेंगे। नारदजी ने कहा- राधा! तेरे सिवाय झूमर का पता कोई नहीं बता सकता! तू बता कहाँ मिलेगी? राधा ने सोचा इस नारद की खोज मिटे, यह मेरे पीछे पड़ गया है, फजीते करा देगा।

नन्दगाँव गोदाणा रा बीच में, खोजो खोज लगावे।
बिरज भान री डावड़ी, यो उनको भरम बतावे।
झूमर पाई वे तो दीजो, लालजी लादी वे तो दीजो।
नखराळा री झूमरली, कोइ पाई वे तो दीजो।

- राधा कहती हैं कि- नंदगाँव और गोदाणा के बीच में कोई खोज करने वाला पता लगाये। वृषभान की पुत्री उनको भेद बता रही है। इस प्रकार कहा तो सभी लोग बिखर गये और झूमर खोजने लगे। चुपके से राधा-कृष्ण से मिली और कहा- तेरी भी चुप और मेरी भी चुप और शाम को अँधेरा होने पर चुपके से आना, यह नारद पीछे पड़ गया है अपने फजीते करा देगा।

सांझ पड़े दन आतमें ने, छाने-छाने अइजो।
हार तो देजइजो कानजी, झूमरली ले जइजो।
झूमर पाई वे तो दीजो...

- राधा ने कहा- शाम को सूर्यास्त के बाद चुपके से आना, मेरा हार दे जाना और झूमर ले जाना। राधा ने कहा वैसा ही कृष्ण ने किया और सभी मन में तो जानते ही थे कि झूमर राधा के ही पास है। कृष्ण झूमर लेकर आ गये और घर में शरमा कर बैठ गये। इस प्रकार प्रकरण समाप्त हुआ।