आकाश से उतरा एक झूला
कमरे की छत पर
उसमें एक हरा तोता
एक कव्वा
पुष्प पारिजात के
भीतर से मैंने कहा
‘ये मेरे झूला झूलने की उम्र नहीं’
बाहर से किसी ने कहा
‘मगर प्यास का क्या करें’
मैं लोटा भर शीतल जल
छत पर लाया
उठने लगा तब तक झूला ऊपर
जैसे खींच रहा हो कोई
अभ्यस्त हाथों
मेरे हाथों में लोटा था
दूर तोते और कव्वे की
पुकार से
पारिजात के पुष्प
उड़ते
गिर रहे थे मेरे सिर पर
भीतर कमरे में
झूल रही थी
मकड़ी
मुखौटे पर