Last modified on 19 अगस्त 2011, at 21:36

झोपड़ों से उठ रही आवाज़ है मेरी ग़ज़ल / बल्ली सिंह चीमा

झोपड़ों से उठ रही आवाज़ है मेरी ग़ज़ल ।
प्यार करने का नया अन्दाज़ है मेरी ग़ज़ल ।

चोट खाए परिन्दों के डैनों में करवट ले रही,
और दिल में जी रही परवाज़ है मेरी ग़ज़ल ।

जो लड़ी जाएगी उनके और हमारे दरमियाँ,
उस लड़ाई का सही आग़ाज़ है मेरी ग़ज़ल ।

कल के चेहरे को ज़रा सुन्दर बनाने के लिए,
जूझता जो रात-दिन वो आज है मेरी ग़ज़ल ।

ज़िन्दगी को ज़िन्दगी जैसा बनाने के लिए,
मौत के हर दख़ल पर एतराज़ है मेरी ग़ज़ल ।